Thursday, June 25, 2009

Ganesh Stuti by Lord Shiva and Maa Parvati श्रीशिवशक्ति द्वारा श्रीगणेशजी का स्तुति

 श्रीशिवशक्ति द्वारा श्रीगणेशजी का स्तुति
Ganesh Stuti by Lord Shiva and Maa Parvati


श्रीशक्तिशिवावूचतु:

नमस्ते गणनाथाय गणानां पतये नम:। भक्तिप्रियाय देवेश भक्तेभ्य: सुखदायक॥१॥
स्वानन्दवासिने तुभ्यं सिद्धिबुद्धिवराय च। नाभिशेषाय देवाय ढुण्ढिराजाय ते नम:॥२॥
वरदाभयहस्ताय नम: परशुधारिणे। नमस्ते सृणिहस्ताय नाभिशेषाय ते नम:॥३॥
अनामयाय सर्वाय सर्वपूज्याय ते नम:। सगुणाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मणे निर्गुणाय च॥४॥
ब्रह्मभ्यो ब्रह्मदात्रे च गजानन नमोऽस्तु ते। आदिपूज्याय ज्येष्ठाय ज्येष्ठराजाय ते नम:॥५॥
मात्रे पित्रे च सर्वेषां हेरम्बाय नमो नम:। अनादये च विघन्ेश विघन्कत्र्रे नमो नम:॥६॥
विघन्हत्र्रे स्वभक्तानां लम्बोदर नमोऽस्तु ते। त्वदीयभक्तियोगेन योगीशा: शान्तिमागता:॥७॥
किं स्तुवो योगरूपं तं प्रणमावश्च विघन्पम्। तेन तुष्टो भव स्वामिन्नित्युक्त्वा तं प्रणेमतु:॥८॥
तावुत्थाप्य गणाधीश उवाच तौ महेश्वरौ॥९॥

श्रीगणेश उवाच

भवत्कृतमिदं स्तोत्रं मम भक्तिविवर्धनम्।
भविष्यति च सौख्यस्य पठते श्रृण्वते प्रदम्। भुक्तिमुक्तिप्रदं चैव पुत्रपौत्रादिकंतथा॥१०॥
धनधान्यादिकं सर्व लभते तेन निश्चितम्॥११॥


अर्थ :- श्रीशक्ति और शिव बोले - भक्तों को सुख देनेवाले देवेश्वर! आप भक्तिप्रिय हैं तथा गणों के अधिपति हैं; आप गणनाथ को नमस्कार है। आप स्वानन्दलोक के वासी और सिद्धि-बुद्धि के प्राणवल्लभ हैं। आपकी नाभि में भूषणरूप से शेषनाग विराजते हैं; आप ढुण्ढिराज देवको नमस्कार है। आपके हाथों में वरद और अभय की मुद्राएँ हैं। आप परशु धारण करते हैं। आपके हाथ में अङ्कुश शोभा पाता है और नाभि में नागराज; आपको नमस्कार है। आप रोगरहित, सर्वस्वरूप और सबके पूजनीय हैं; आपको नमस्कार है। आप ही सगुण और निर्गुण ब्रह्म हैं; आपको नमस्कार है। आप ब्राह्मणों को ब्रह्म (वेद एवं ब्रह्म-तत्त्‍‌व का ज्ञान) देते हैं; गजानन! आपको नमस्कार है। आप प्रथम पूजनीय, ज्येष्ठ (कुमार कार्तिकेय के बडे भाई) और ज्येष्ठराज हैं; आपको नमस्कार है। सबके माता और पिता आप हेरम्ब को बारम्बार नमस्कार है। विघन्ेश्वर! आप अनादि और विघनें के भी जनक हैं; आपको बार-बार नमस्कार है। लम्बोदर! आप अपने भक्तों का विघन् हरण करनेवाले हैं; आपको नमस्कार है। योगीश्वरगण आपके भक्तियोग से शान्ति को प्राप्त हुए हैं। योगस्वरूप आपकी हम दोनों क्या स्तुति करें। आप विघन्राज को हम दोनों प्रणाम करते हैं। स्वामिन्! इस प्रणाममात्र से आप संतुष्ट हों।

ऐसा कहकर शिवा-शिव ने गणेशजी को प्रणाम किया। तब उन दोनों को उठाकर गणाधीश ने कहा-आप दोनों द्वारा किया गया यह स्तवन मेरी भक्ति को बढानेवाला है। जो इसका पठन और श्रवण करेगा, उसके लिये यह सौख्यप्रद होगा। इसके अतिरिक्त यह भोग और मोक्ष तथा पुत्र और पौत्र आदि को भी देनेवाला होगा। मनुष्य इस स्तोत्र के द्वारा धन-धान्य आदि सभी वस्तुएँ निश्चितरूप से प्राप्त कर लेता है।








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Wednesday, June 24, 2009

Shiva Aksharamala Stotram श्री सांब सदाशिव अक्षरमालास्तवः

श्री सांब सदाशिव अक्षरमालास्तवः
Shiva Aksharamala Stotram


अथ श्री सांब सदाशिव अक्षरमालास्तवः

सांब सदाशिव सांब सदाशिव ।
सांब सदाशिव सांब शिव ॥
अद्भुतविग्रह अमराधीश्वर अगणित गुणगण अमृत शिव - हर - सांब
आनन्दामृत आश्रितरक्षक आत्मानन्द महेश शिव - हर - सांब
इन्दुकलादर इन्द्रादिप्रिय सुन्दररूप सुरेश शिव - हर - सांब
ईश सुरेश महेश जनप्रिय केशव सेवित कीर्ति शिव - हर - सांब
उरगादिप्रिय उरगविभूषण नरकविनाश नतेश शिव - हर - सांब
ऊर्जितदान वनाश परात्पर आर्जितपापविनाश शिव - हर - सांब
ऋग्वेदश्रुति मौलि विभूषण रवि चन्द्राग्नित्रिनेत्र शिव - हर - सांब
ॠपनामादि प्रपञ्चविलक्षण तापनिवारण तत्व शिव - हर - सांब
ऌल्लिस्वरूप सहस्रकरोत्तम वागीश्वर वरदेश शिव - हर - सांब
ॡताधीश्वर रूपप्रिय हर वेदान्तप्रिय वेद्य शिव - हर - सांब
एकानेक स्वरूप सदाशिव भोगादिप्रिय पूर्ण शिव - हर - सांब
ऐश्वर्याश्रय चिन्मय चिद्घन सच्चिदानन्द सुरेश शिव - हर - सांब
ओङ्कारप्रिय उरगविभूषण ह्रींङ्कारप्रिय ईश शिव - हर - सांब
औरसलालित अन्तकनाशन गौरिसमेत गिरीश शिव - हर – सांब
अंबरवास चिदंबर नायक तुंबुरु नारद सेव्य शिव - हर - सांब
आहारप्रिय अष्त दिगीश्वर योगिहृदि प्रियवास शिव - हर - सांब
कमलापूजित कैलासप्रिय करुणासागर काशि शिव - हर - सांब
खड्गशूल मृग टङ्कधनुर्धर विक्रमरूप विश्वेश शिव - हर - सांब
गंगा गिरिसुत वल्लभ शङ्कर गणहित सर्वजनेश शिव - हर - सांब
घातकभंजन पातकनाशन दीनजनप्रिय दीप्ति शिव - हर - सांब
ङान्तास्वरूपानन्द जनाश्रय वेदस्वरूप वेद्य शिव - हर - सांब
चण्डविनाशन सकलजनप्रिय मण्डलाधीश महेश शिव - हर - सांब
छत्रकिरीट सुकुण्डल शोभित पुत्रप्रिय भुवनेश शिव - हर - सांब
जन्मजरा मृत्यादि विनाशन कल्मषरहित काशि शिव - हर – सांब
झङ्कारप्रिय भृंगिरिटप्रिय ओङ्कारेश्वर विश्वेश शिव - हर - सांब
ञानाञान विनाशन निर्मल दीनजनप्रिय दीप्ति शिव - हर - सांब
टङ्कस्वरूप सहस्रकरोत्तम वागीश्वर वरदेश शिव - हर - सांब
ठक्काद्यायुध सेवित सुरगण लावण्यामृत लसित शिव - हर - सांब
डंभविनाशन डिण्डिमभूषण अंबरवास चिदेक शिव - हर - सांब
ढंढंडमरुक धरणीनिश्चल ढुंढिविनायक्क सेव्य शिव - हर - सांब
णाणामणिगण भूषणनिर्गुण नतजनपूत सनाथ शिव - हर - सांब
तत्वमस्यादि वाक्यार्थ स्वरूप नित्यस्वरूप निजेश शिव - हर - सांब
स्थावरजंगम भुवनविलक्षण तापनिवारण तत्व शिव - हर - सांब
दन्तिविनाशन दलितमनोभव चन्दन लेपित चरण शिव - हर - सांब
धरणीधरशुभ धवलविभासित धनदादिप्रिय दान शिव - हर - सांब
नलिनविलोचन नटनमनोहर अलिउलभूषण अमृत शिव - हर - सांब
पार्वतिनायक पन्नगभूषण परमानन्द परेश शिव - हर - शांब
फालविलोचन भानुकोटिप्रभ हालाहलधर अमृत शिव - हर - सांब
बन्धविमोचन बृहतीपावन स्कन्दादिप्रिय कनक शिव - हर - सांब
भस्मविलेपन भवभयमोचन विस्मयरूप विश्वेश शिव - हर - सांब
मन्मथनाशन मधुरानायक मन्दरपर्वतवास शिव - हर - सांब
यतिजन हृदयाधिनिवास विधिविष्ण्वादि सुरेश शिव - हर - सांब
लङ्काधीश्वर सुरगण सेवित लावण्यामृत लसित शिव - हर - सांब
वरदाभयकर वासुकिभूषण वनमालादि विभूष शिव - हर - सांब
शान्ति स्वरूपातिप्रिय सुन्दर वागीश्वर वरदेश शिव - हर - सांब
षण्मुखजनक सुरेन्द्रमुनिप्रिय षाड्गुण्यादि समेत शिव - हर - सांब
संसारार्णव नाशन शाश्वत साधुजन प्रियवास शिव - हर - सांब
हरपुरुषोत्तम अद्वैतामृत मुररिपुसेव्य मृदेश शिव - हर - सांब
लालित भक्तजनेश निजेश्वर कालिनटेश्वर काम शिव - हर - सांब
क्षररूपाभि प्रियान्वित सुन्दर साक्षात् स्वामिन्नंबा समेत शिव - हर - सांब
सांब सदाशिव सांब सदाशिव सांब सदाशिव सांब शिव

॥ इति श्रीसांब सदाशिव अक्षरमालास्तव: सम्पूर्णम् ॥


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Tuesday, June 23, 2009

देवदेवी का गायत्री मन्त्र Gayatri Mantra of Various Deities

Gayatri Mantra of Various Deities
देवदेवी का गायत्री मन्त्र


  1. मुल गायत्री मन्त्र :- ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
  2. गणेशः- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
  3. गणेशः- ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
  4. गणेशः- ॐ महोत्कटाय विद्महे वक्रतुंडाय धीमही। तन्नोदंती प्रचोदयात् ॥
  5. गणेशः- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
  6. गणेशः- ॐ तत्कराटाय विघ्नहे हस्तिमुखाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
  7. ब्रह्माः- ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
  8. ब्रह्माः- ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
  9. ब्रह्माः- ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥
  10. विष्णुः- ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु प्रचोदयात् ॥
  11. रुद्रः- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
  12. रुद्रः- ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, सहस्राक्षाय महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र प्रचोदयात् ॥
  13. दक्षिणामूर्तीः- ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे, ध्यानस्थाय धीमहि, तन्नो धीशः प्रचोदयात् ॥
  14. हयग्रीवः- ॐ वागीश्वराय विद्महे, हयग्रीवाय धीमहि, तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
  15. दुर्गाः- ॐ कात्यायन्यै विद्महे, कन्यकुमार्यै च धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
  16. दुर्गाः- ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्याकुमारि धीमहि तन्नो दुर्गिः प्रचोदयात् ॥
  17. दुर्गाः- ॐ महाशूलिन्यै विद्महे, महादुर्गायै धीमहि, तन्नो भगवती प्रचोदयात् ॥
  18. दुर्गाः- ॐ गिरिजाय च विद्महे, शिवप्रियाय च धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
  19. सरस्वतीः- ॐ वाग्देव्यै च विद्महे, कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
  20. लक्ष्मीः- ॐ महादेव्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॥
  21. महालक्ष्मी:- ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
  22. शक्तिः- ॐ सर्वसंमोहिन्यै विद्महे, विश्वजनन्यै धीमहि, तन्नो शक्ति प्रचोदयात् ॥
  23. अन्नपूर्णाः- ॐ भगवत्यै च विद्महे, महेश्वर्यै च धीमहि, तन्नोन्नपूर्णा प्रचोदयात् ॥
  24. कालीः- ॐ कालिकायै च विद्महे, स्मशानवासिन्यै धीमहि, तन्नो घोरा प्रचोदयात् ॥
  25. नन्दिकेश्वराः- ॐ तत्पुरूषाय विद्महे, नन्दिकेश्वराय धीमहि, तन्नो वृषभः प्रचोदयात् ॥
  26. गरुडः- ॐ तत्पुरूषाय विद्महे, सुवर्णपक्षाय धीमहि, तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
  27. हनुमनः- ॐ आञ्जनेयाय विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि, तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥
  28. हनुमनः- ॐ वायुपुत्राय विद्महे, रामदूताय धीमहि, तन्नो हनुमत् प्रचोदयात् ॥
  29. शण्मुखः- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महासेनाय धीमहि, तन्नो शण्मुख प्रचोदयात् ॥
  30. ऐयप्पनः- ॐ भूतादिपाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो शास्ता प्रचोदयात् ॥
  31. धनवन्त्रीः- ॐ अमुद हस्ताय विद्महे, आरोग्य अनुग्रहाय धीमहि, तन्नो धनवन्त्री प्रचोदयात् ॥
  32. कृष्णः- ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्ण प्रचोदयात् ॥
  33. राधाः- ॐ व्रिशभानुजाय विद्महे, कृष्णप्रियाय धीमहि, तन्नो राधा प्रचोदयात् ॥
  34. रामाः- ॐ दशरताय विद्महे, सीता वल्लभाय धीमहि, तन्नो रामाः प्रचोदयात् ॥
  35. सीताः- ॐ जनकनन्दिंयै विद्महे, भूमिजयै धीमहि, तन्नो सीता प्रचोदयात् ॥
  36. तुलसीः- ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो ब्रिन्दा प्रचोदयात् ॥


Please note: There can be any other forms of Gayatri Mantra, so it doesn’t matter which path you take since the goal is same.

Please help in growing this list so that it will be ease for other viewers. Should there be any Gayatri Mantra that has been left out please feel free to post in the Comments I will post ASAP.

Please keep in mind that Gayatri Mantra is the most powerful mantra. Its is said that this must be recited with utmost care. But no one is perfect and somtimes, even the learnt scholar make mistakes. I suggest that you ask for forgiveness with mother Gayatri after reciting any of these mantras. Keep in mind that the Nature of Mother, She is the most wonderful that is in this Universe.

कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

It is better to seek help of Guru or priest in reciting Gayatri Mantra.

DO NOT FORGET TO SAY AUM SHANTI AUM SHANTI AUM SHANTI AFTER RECITING GAYATRI MANTRA.

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

Thank You!


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Lord Shiva Gayatri Mantra श्री शिव गायत्री मन्त्र

श्री शिव गायत्री मन्त्र
Shiva Gayatri Mantra
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥

ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, सहस्राक्षाय महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात् ॥

These are Gayatri Mantra dedicated to Lord Shiva. There can be others also please post in the comments if you know any other Gayatri Mantra dedicated to Lord Shiva (शिव).
There are hundreds of paths up the mountain, all leading in the same direction, so it doesn’t matter which path you take.

In the videos below I have give two Gayatri Mantras.

शिवप्रातःस्मरणस्तोत्रम् (Shiva Morning Prayers)

ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, सहस्राक्षाय महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात्

प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् ।
खट्टाङ्गशूलरवदाभयहस्तमीशं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्
॥१॥
प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम् ।
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोभिरामं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्
॥२॥
प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं वेदान्तवेद्यमनघं पुरूषं महान्तम् ।
नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्
॥३॥







Prayer for Forgiveness




कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्








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Monday, June 22, 2009

Kali Ashtakam श्रीकालिकाष्टकम्

श्रीकालिकाष्टकम्
Kali Ashtakam
by
Adi Shankaracharya

ध्यानम्
ध्यान

गलद् रक्तमण्डावलीकण्ठमाला महाघोररावा सुदंष्ट्रा कराला ।
विवस्त्रा श्मशानलया मुक्तकेशी महाकालकामाकुला कालिकेयम् ॥१॥

ये भगवती कालिका गलेमें रक्त टपकते हुए मुण्डसमूहोंकी माला पहने हुए हैं, ये अत्यन्त घोर शब्द कर रही हैं, इनकी सुन्दर दाढें हैं तथा स्वरुप भयानक है, ये वस्त्ररहित हैं ये श्मशानमें निवास करती हैं, इनके केश बिखरे हुए हैं और ये महाकालके साथ कामलीलामें निरत हैं ॥१॥

भुजे वामयुग्मे शिरोsसिं दधाना वरं दक्षयुग्मेsभयं वै तथैव ।
सुमध्या
sपि तुङ्गस्तनाभारनम्रा लसद् रक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या ॥२

ये अपने दोनों दाहिने हाथोंमें नरमुण्ड और खड्ग लिये हुई हैं तथा अपने दोनों दाहिने हाथोंमें वर और अभयमुद्रा धारण किये हुई हैं । ये सुन्दर कटिप्रदेशवाली है, ये उन्नत स्तनोंके भारसे झुकी हुईसी हैं इनके ओष्ठ द्वयका प्रान्त भाग रक्तसे सुशोभित है और इनका मुख-मण्डल मधुर मुस्कानसे युक्त है ॥२॥

शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची ।
शवाकारमञ्चाधिरूढा शिवाभि-श्चर्दिक्षुशब्दायमाना
sभिरेजे ॥३॥

इनके दोनों कानोंमें दो शवरूपी आभूषण हैं, ये सुन्दर केशवाली हैं, शवोंके बनी सुशोभित करधनी ये पहने हुई हैं, शवरूपी मंचपर ये आसीन हैं और चारों दिशाओंमें भयानक शब्द करती हुई सियारिनोंसे घिरी हुई सुशोभित हैं ॥३॥

स्तुति:
स्तुति

विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन् समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु: ।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥४॥

ब्रह्मा आदि तीनों देवता आपके तीनों गुणोंका आश्रय लेकर तथा आप भगवती कालीकी ही आराधना कर प्रधान हुए हैं ।आपका स्वरूप आदिसहित है, देवताओंमें अग्रगण्य है प्रधान यज्ञस्वरूप है और विश्वका मूलभूत है; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहिं जानते ॥४॥

जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम् ।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥५॥

आपका यह स्वरूप सारे विश्वको मुग्ध करनेवाला है, वाणीद्वारा स्तुति किये जानेयोग्य है, वाणीका स्तम्भन करनेवाला है और उच्चाटन करनेवाला है; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥५॥

इयं स्वर्गदात्री पुन: कल्पवल्ली मनोजांस्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात् ।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥६॥

ये स्वर्गको देनेवाली हैं और कल्पलताके समान हैं । ये भक्तोंके मनमें उत्पन्न होनेवाली कामनाऔंको ‍यथार्थरूपमें पूर्ण करती हैं । और वे सदाके लिये कृतार्थ हो जाते हैं; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥६॥

सुरापानमत्ता सभुक्तानुरक्ता लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते ।
जपध्यानपूजासुधाधौतपङ्का स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥७॥

आप सुरापनसे मत्त रहती हैं और अपने भक्तोंपर सदा स्नेह रखती हैं । भक्तोंके मनोहर तथा पवित्र हृदयमें ही सदा आपका आविर्भाव होता है । जप, ध्यान तथा पूजारूपी अमृतसे आप भक्तोंके अज्ञानरूपी पंकको धो डालनेवाली हैं, आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥७॥

चिदान्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:॥८॥

आपका स्वरूप चिदानन्दघन, मन्द-मन्द मुसकाने सम्पन्न, शरत्कालीन करोडों चन्द्रमाके प्रभासमूहके प्रतिबिम्ब-सदृश और मुनियों तथा कवियोंके हृदयको प्रकाशित करनेवाला है; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥८॥

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा कदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया ।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥९॥

आप प्रलयकालीन घटाओंके समान कृष्णवर्णा हैं आप कभी रक्तवर्णवाली तथा कभी उज्ज्वलवर्णवाली भी हैं । आप विचित्र आकृतिवाली तथा योगमायास्वरूपिणी हैं आप न बाला, न वृद्धा और न कामातुरा युवती ही हैं; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥९॥

क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं मया लोकमध्ये प्रकाशीकृत यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात् स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥१०॥

आपके ध्यानसे पवित्र होकर चंचलतावश इस अत्यन्त गुप्तभावको जो मैंने संसारमें प्रकट कर दिया है, मेरे इस अपराधको आप क्षमा करें, आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥१०॥

फलश्रुति:
फलश्रुति

यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्य-स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च ।
गृह चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्ति: स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥११॥

यदि कोई मनुष्य ध्यानयुक्त होकर इसका पाठ करता है, तो वह सारे लोकोंमे महान् हो जाता है  उसे अपने घरमें ओठों सिद्धियाँ प्राप्त रहती हैं और मरनेपर मूक्ति भी प्राप्त हो जाती है; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥११॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
॥इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्यविरचित श्रीकालिकाष्टक सम्पूर्ण हुआ ॥






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Sunday, June 21, 2009

Bhadrakali Ashtakam Stuti भद्रकालीस्तुति:

भद्रकालीस्तुति:
Bhadrakali Stuti 
ब्रह्माविष्णु ऊचतु:

नमामि त्वां विश्वकर्त्रीं परेशीं नित्यामाद्यां सत्यविज्ञानरूपाम् ।
वाचातीतां निर्गणां चातिसूक्ष्मां ज्ञानातीतां शुद्धविज्ञानगम्याम् ॥१॥
पूर्णां शुद्धां विश्वरूपा सुरूपां देवीं वन्द्यां विश्ववनद्यामपि त्वाम् ।
सर्वान्त:स्थामुत्तमस्थानसस्था मीडे कालीं विश्वसम्पालयित्रीम् ॥२॥
मायातीतां मायिनीं वापि मायां भिमां श्यामां भीमनेत्रां सुरेशीम् ।
विद्यां सिद्धां सर्वभूताशयस्था मीडे कालीं विश्वसम्पालयित्रीम् ॥३॥
नो ते रूपं वेत्ति शीलं च धाम नो वा ध्यानं नापि मन्त्रं महेशि ।
सत्तारूपे त्वां प्रपद्ये शरण्ये विश्वाराध्ये सर्वलोकैकहेतुम् ॥४॥
द्यौस्ते शीर्षं नाभिदेशो नभश्च चक्षूंषि ते चन्द्रसूर्यानलास्ते ।
उन्मेषास्ते सुप्रबोधो दिवा च रात्रिर्मातश्चक्षुषोस्ते निमेषम् ॥५॥
वाक्यं देवा भूमिरेषा नितम्बं पादौ गुल्फं जानुजङ्घस्त्वधस्ते ।
प्रीतिर्धर्मोsधर्मोकार्यं हि कोप: सृष्टिर्बोध: संहृतिस्ते तु निद्रा ॥६॥
अग्निर्जिह्वा ब्राह्मणास्ते मुखाब्जं संध्ये द्वे ते भ्रूयुगं विश्वमूर्ति: ।
श्वासो वायुर्बावो लोकपाला: क्रीडा सृष्टि: संस्थाति: संहृतिस्ते ॥७॥
एवंभूतां देवि विश्वात्मिकां त्वां कालीं वन्दे ब्रह्मविद्यास्वरूपाम् ।
मात: पूर्ण ब्रह्मविज्ञानगम्ये दुर्गेsपारे साररूपे प्रसीद ॥८॥
॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे ब्रह्मविष्णुकृता भद्रकालीस्तुती: सम्पूर्णा ॥



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