Monday, June 22, 2009

Kali Ashtakam श्रीकालिकाष्टकम्

श्रीकालिकाष्टकम्
Kali Ashtakam
by
Adi Shankaracharya

ध्यानम्
ध्यान

गलद् रक्तमण्डावलीकण्ठमाला महाघोररावा सुदंष्ट्रा कराला ।
विवस्त्रा श्मशानलया मुक्तकेशी महाकालकामाकुला कालिकेयम् ॥१॥

ये भगवती कालिका गलेमें रक्त टपकते हुए मुण्डसमूहोंकी माला पहने हुए हैं, ये अत्यन्त घोर शब्द कर रही हैं, इनकी सुन्दर दाढें हैं तथा स्वरुप भयानक है, ये वस्त्ररहित हैं ये श्मशानमें निवास करती हैं, इनके केश बिखरे हुए हैं और ये महाकालके साथ कामलीलामें निरत हैं ॥१॥

भुजे वामयुग्मे शिरोsसिं दधाना वरं दक्षयुग्मेsभयं वै तथैव ।
सुमध्या
sपि तुङ्गस्तनाभारनम्रा लसद् रक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या ॥२

ये अपने दोनों दाहिने हाथोंमें नरमुण्ड और खड्ग लिये हुई हैं तथा अपने दोनों दाहिने हाथोंमें वर और अभयमुद्रा धारण किये हुई हैं । ये सुन्दर कटिप्रदेशवाली है, ये उन्नत स्तनोंके भारसे झुकी हुईसी हैं इनके ओष्ठ द्वयका प्रान्त भाग रक्तसे सुशोभित है और इनका मुख-मण्डल मधुर मुस्कानसे युक्त है ॥२॥

शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची ।
शवाकारमञ्चाधिरूढा शिवाभि-श्चर्दिक्षुशब्दायमाना
sभिरेजे ॥३॥

इनके दोनों कानोंमें दो शवरूपी आभूषण हैं, ये सुन्दर केशवाली हैं, शवोंके बनी सुशोभित करधनी ये पहने हुई हैं, शवरूपी मंचपर ये आसीन हैं और चारों दिशाओंमें भयानक शब्द करती हुई सियारिनोंसे घिरी हुई सुशोभित हैं ॥३॥

स्तुति:
स्तुति

विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन् समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु: ।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥४॥

ब्रह्मा आदि तीनों देवता आपके तीनों गुणोंका आश्रय लेकर तथा आप भगवती कालीकी ही आराधना कर प्रधान हुए हैं ।आपका स्वरूप आदिसहित है, देवताओंमें अग्रगण्य है प्रधान यज्ञस्वरूप है और विश्वका मूलभूत है; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहिं जानते ॥४॥

जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम् ।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥५॥

आपका यह स्वरूप सारे विश्वको मुग्ध करनेवाला है, वाणीद्वारा स्तुति किये जानेयोग्य है, वाणीका स्तम्भन करनेवाला है और उच्चाटन करनेवाला है; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥५॥

इयं स्वर्गदात्री पुन: कल्पवल्ली मनोजांस्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात् ।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥६॥

ये स्वर्गको देनेवाली हैं और कल्पलताके समान हैं । ये भक्तोंके मनमें उत्पन्न होनेवाली कामनाऔंको ‍यथार्थरूपमें पूर्ण करती हैं । और वे सदाके लिये कृतार्थ हो जाते हैं; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥६॥

सुरापानमत्ता सभुक्तानुरक्ता लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते ।
जपध्यानपूजासुधाधौतपङ्का स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥७॥

आप सुरापनसे मत्त रहती हैं और अपने भक्तोंपर सदा स्नेह रखती हैं । भक्तोंके मनोहर तथा पवित्र हृदयमें ही सदा आपका आविर्भाव होता है । जप, ध्यान तथा पूजारूपी अमृतसे आप भक्तोंके अज्ञानरूपी पंकको धो डालनेवाली हैं, आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥७॥

चिदान्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:॥८॥

आपका स्वरूप चिदानन्दघन, मन्द-मन्द मुसकाने सम्पन्न, शरत्कालीन करोडों चन्द्रमाके प्रभासमूहके प्रतिबिम्ब-सदृश और मुनियों तथा कवियोंके हृदयको प्रकाशित करनेवाला है; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥८॥

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा कदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया ।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥९॥

आप प्रलयकालीन घटाओंके समान कृष्णवर्णा हैं आप कभी रक्तवर्णवाली तथा कभी उज्ज्वलवर्णवाली भी हैं । आप विचित्र आकृतिवाली तथा योगमायास्वरूपिणी हैं आप न बाला, न वृद्धा और न कामातुरा युवती ही हैं; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥९॥

क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं मया लोकमध्ये प्रकाशीकृत यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात् स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥१०॥

आपके ध्यानसे पवित्र होकर चंचलतावश इस अत्यन्त गुप्तभावको जो मैंने संसारमें प्रकट कर दिया है, मेरे इस अपराधको आप क्षमा करें, आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥१०॥

फलश्रुति:
फलश्रुति

यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्य-स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च ।
गृह चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्ति: स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ॥११॥

यदि कोई मनुष्य ध्यानयुक्त होकर इसका पाठ करता है, तो वह सारे लोकोंमे महान् हो जाता है  उसे अपने घरमें ओठों सिद्धियाँ प्राप्त रहती हैं और मरनेपर मूक्ति भी प्राप्त हो जाती है; आपके इस स्वरूपको देवता भी नहीं जानते ॥११॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
॥इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्यविरचित श्रीकालिकाष्टक सम्पूर्ण हुआ ॥






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3 comments:

Diwakar Kushwaha said...

Jai Maa Kaali,

Aapne ye Divya Strota Submit karke bahut he acha kaam kiya hai parantu agar aap isko sudh roop se submit kare to hum iska laabh avashya utha sakenge.

Unknown said...

I have made the corrections and also kept the Hindi translation.

जय माँ काली

ashok yadav said...

bhai thanks main kaphi time se Kali Ashtakam ka hindi translation search kar raha tha aaj use aapke blog mein dekha mehnat meri safal hui once again thanks a lot pls continue this job