Wednesday, August 12, 2009

Nava Durga and Dasa Maha Vidya Strotra

Nava Durga and Dasa Maha vidya


शैलपुत्री स्तुति

जगत्पजये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरूपिणि। सर्वात्मिकेशि कौमारि जगन्मातर्नमोsस्तु ते॥

ब्रह्मचारिणी स्तुति

त्रिपुरां त्रिर्गुणाधारां मार्गज्ञानस्वरूपिणीम् । त्रैलोक्यवन्दितां देवीं त्रिमूर्ति प्रणमाम्यहम् ॥

चन्द्रघण्डा स्तुति

कालिकां तु कलातीतां कल्याणहृदयां शिवाम् । कल्याणजननीं नित्यं कल्याणीं प्रणमाम्यहम् ॥

कूष्माण्डा स्तुति

अणिमाहिदगुणौदारां मकराकारचक्षुषम् । अनन्तशक्तिभेदां तां कामाक्षीं प्रणमाम्यहम् ॥

स्कन्दमाता स्तुति

चण्डवीरां चण्डमायां चण्डमुण्डप्रभञ्जनीम् । तां नमामि च देवेशीं चण्डिकां चण्डविक्रमाम् ॥

कात्यायनी स्तुति

सुखानन्दकरीं शान्तां सर्वदेवैर्नमस्कृताम् । सर्वभूतात्मिकां देवीं शाम्भवीं प्रणमाम्यहम् ॥

कालरात्रि स्तुति

चण्डवीरां चण्डमायां रक्तबीज-प्रभञ्जनीम् । तां नमामि च देवेशीं कालरात्रीं गुणशालिनीम् ॥

महागौरी स्तुति

सुन्दरीं स्वर्णसर्वाङ्गीं सुखसौभाग्यदायिनिम् । सन्तोषजननीं देवीं महागौरी प्रणमाम्यम् ॥

सिद्धिदात्री स्तुति

दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भयदुर्गविनाशिनि । प्रणमामि सदा भक्तया दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम् ॥

दश महाविद्या स्तुति

काली स्तुति

रक्ताsब्धिपोतारूणपद्मसंस्थां पाशांकुशेष्वासशराsसिबाणान् । शूलं कपालं दधतीं कराsब्जै रक्तां त्रिनेत्रां प्रणमामि देवीम् ॥

तारा स्तुति

मातर्तीलसरस्वती प्रणमतां सौभाग्य-सम्पत्प्रदे प्रत्यालीढ –पदस्थिते शवह्यदि स्मेराननाम्भारुदे ।
फुल्लेन्दीवरलोचने त्रिनयने कर्त्रो कपालोत्पले खड्गञ्चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥

षोडशी स्तुति

बालव्यक्तविभाकरामितनिभां भव्यप्रदां भारतीम् ईषत्फल्लमुखाम्बुजस्मितकरैराशाभवान्धापहाम् ।
पाशं साभयमङ्कुशं च ‍वरदं संविभ्रतीं भूतिदा ।
भ्राजन्तीं चतुरम्बजाकृतिकरैभक्त्या भजे षोडशीम् ॥

छिन्नमस्ता स्तुति

नाभौ शुद्धसरोजवक्त्रविलसद्बांधुकपुष्पारुणं भास्वद्भास्करमणडलं तदुदरे तद्योनिचक्रं महत् ।
तन्मध्ये विपरीतमैथुनरतप्रद्युम्नसत्कामिनी पृष्ठस्थां तरुणार्ककोटिविलसत्तेज: स्वरुपां भजे ॥

त्रिपुरभैरवी स्तुति

उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां रक्तालिप्तपयोधरां जपपटीं विद्यामभीतिं वरम् ।
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं देवीं बद्धहिमांशुरत्नमुकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ॥

धूमावती स्तुति

प्रातर्यास्यात्कमारी कुसुमकलिकया जापमाला जयन्ती मध्याह्रेप्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम् ।
सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालोका पातु युष्मान् ॥

बगलामूखी स्तुति

मध्ये सुधाब्धि – मणि मण्डप – रत्नवेद्यां सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम् ।
पीताम्बराभरण – माल्य – बिभूतिषताङ्गी देवीं स्मरामि धृत-मुद्गर वैरिजिह्वाम् ॥

मातङगी स्तुति

श्यामां शुभ्रांशुभालां त्रिकमलनयनां रत्नसिंहासनस्थां भक्ताभीष्टप्रदात्रीं सुरनिकरकरासेव्यकंजांयुग्माम् ।
निलाम्भोजांशुकान्ति निशिचरनिकारारण्यदावाग्निरूपां पाशं खङ्गं चतुर्भिर्वरकमलकै: खेदकं चाङ्कुशं च ॥

भुवनेश्वरी स्तुति

उद्यद्दिनद्युतिमिन्दुकिरीटां तुंगकुचां नयनवययुक्ताम् ।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुश पाशभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥

कमला स्तुति

त्रैलोक्यपूजिते देवि कमले विष्णुबल्लभे ।
यथा त्वमचल कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा ॥

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Sunday, August 9, 2009

Yamuna Kwach यमुना कवच

यमुना कवच
Yamuna Kwach

यमुना कवच

सौभरि उवाच:

ध्यानम्

यमुनायाश्च कवचं सर्वक्षाकरं नृणाम् । चतुष्पदार्थदं साक्षाच्छृणु राजन् महामते ॥१॥
कृष्णां चतुर्भुजां पुण्डरीकदलेक्षणाम् । रथस्थां सुन्दरीं ध्यात्वा धारयेत कवचं तत: ॥२॥

कवच

स्नात: पूर्वमुखो मौनी कृतसंध्य: कुशासने । कुशैर्बद्धशिखो विप्र: पठेद् वै स्वस्तिकासन:॥३॥
यमुना मे शिर: पातु कृष्णा नेत्रद्वयं सदा । श्यामा भ्रूभङ्गदेशं च नासिकां नाकवासिनी ॥४॥
कपोलौ पातु मे साक्षात् परमानन्दरूपिणी । कृष्णवामांससम्भूता पातु कर्णद्वयं मम ॥५॥
अधरौ पातु कालिन्दी चिबुकं सूर्यकन्यका । यमस्वसा कन्धरां च हृदयं मे महानदी ॥६॥
कृष्णप्रिया पातु पृष्ठं तटिनी मे भुजद्वयम् । श्रोंणीतटं च सुश्रोणी कटिं मे चारुदर्शना ॥७॥
ऊरुद्वयं तु रम्भोरूर्जानुनी त्वङ्घ्रिभेदिनी । गुल्फौ रासेश्वरी पातु पादौ पापापहारिणी ॥८॥
अन्तर्बहिरधश्चोर्ध्वं दिशासु विदिशासु च । समन्तात् पातु जगत: परिपूर्णतमप्रिया ॥९॥

फलश्रुति

इदं श्रीयमुनायाश्च कवचं पामाद्भुतम् । दशवारं पठेद् भक्त्या निर्धनो धनवान् भवेर् ॥१०॥
त्रिभिर्मासै: पठेद् धिमान् ब्रमाचारी मिताशन: । सर्वराज्याधिपत्यत्वं प्राप्यते नात्र संशय: ॥११॥
दशोत्तशतं नित्यं त्रिमासावधि भक्तित: । य: पठेत् प्रयतो भूत्वा तस्य किं किं न जायते ॥१२॥
य: पठेत् प्रातरुत्थाय सर्वतीर्थफलं लभेत् । अन्ते व्रजेत् परं धाम गोलोकं योगिदुर्भम् ॥१३॥

(गर्गसंहिता, माधुर्य खण्ड, १६। १२-१४)

॥ इति श्रीगर्गसंहिता माधुर्यखण्डे श्रीसौभरि-मांधाता संवादे यमुना कवचम् सम्पूर्णम् ॥


Translation

सौभरि बोले

ध्यान

महामते नरेश ! यमुनाजीका कवच मनुष्योकी सब प्रकारसे सक्षा कसनेवाला तथा साक्षात् चारों पदार्थोंको देनेवाला है, तुम इसे सुनो – यमुनाजीके चार भुजाएँ है । वे श्यामा (श्यामवर्णा एवं षोडश वर्षकी अवस्थासे युक्त) है । उनके नेत्र प्रफल्ल कमलदलके समान सुन्दर एवं विशाल है । वे परम सुन्दर है और दिव्य रथपर बैठी हुई हैं । उनका ध्यान करके कवच धारण करे ॥

स्नान करके पूर्वाभिमुख हो मौनभावसे कुशासनपर बैठे और कुशोंद्वारा शिखा बाँधकर संध्या-वन्दन करनेके अनन्तर ब्रह्मण (अथावा द्विजमात्र) स्वस्तिकासनसे स्थित हे कवचका पाठ करे ।

कवच

यमुना मेरे मस्तककी रक्षा करे और कृष्णा सदा दानों नेत्रोंकी । श्यामा भ्रूभंग-देशकी और नाकवासिनी नासिकाकी रक्षा करें । साक्षात् परमानन्दरूपिणी मेरे दोनों कपोलोंकी रक्षा करें । कृष्णवामांससम्भूता (श्रीकृष्णके बायें कंधेसे प्रकट हुई वे देवी) मेरे दोनों कानोंका संरक्षण करें । कालिन्दी अधरोंकी और सूर्यकन्या चिबुक (ठोढी) की रक्षा करें । यमस्वसा (यमराजकी बहिन) मेरी ग्रीवाकी और महानदी मेरे हृदयकी रक्षा करें । कृष्णप्रिया पृष्ठ –भागका और तटिनी मेरी दोनों भुजाओंका रक्षण करें । सुश्रोणी श्रोणीतट (नितम्ब) की और चारुदर्शना मरे कटिप्रदेशकी रक्षा करें । रम्भरू दोनों ऊरुओं (जाँघो) की और अङ्घ्रिभेदिनी मेरे दोनों घुटनोंकी रक्षा करें । रासेश्वरी गुल्फों (घट्ठयों) का और पापापहारिणी पादयुगलका त्राण करें । परिपूर्णतमप्रिया भीतर-बहार, नीचे-ऊपर तथा दिशाओं और विदिशाओंमें सब ओरसे मेरी रक्षा करें ॥

फलश्रुति

यह श्रीयमुनाका परम अद्भुत कवच है । जो भक्तिभावसे दस इसका पाठ करता है, वह निर्धन भी धनवान् हो जाता है । जो बुद्धिमान् मनुष्य ब्रह्मचर्यके पालनपूर्वक परिमित आहारका सेवन करते हुए तीन मासतक इसका पाठ करेगा, बह सम्पूर्ण राज्योंका आधिपत्य प्राप्त कंर लेगा, इसमें संशय नहीं है । जो तीन महीनकी अवधितक प्रतिदिन भक्तिभावसे शुद्धचित्त हो इसका एक सौ दस बार पाठ करगा, उसको क्या-क्या नहीं मिल जायगा ? जो प्रात:काल उठकर इसका पाठ करेगा, उसे सम्पूर्ण तीर्थोमें स्नानका फल मिल जायगा तथा अन्तमें वह योगिदुर्लभ परमधाम गोलोकमें चला जायगा ॥

॥ इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें माधुर्यखण्डके अन्तर्गत श्रीसौभरि-मांधाताके संवादमे यमुना कवच पुरा हुआ ॥



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Saturday, August 8, 2009

Maha Lakshmi Ashtakam महालक्ष्म्यष्टकं


महालक्ष्म्यष्टकं
Maha Lakshmi Ashtakam
इन्द्र उवाच:
Indra says
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥१॥
Namosthesthu Maha Maye Sree peede, sura poojithe,
Sanka, chakra, Gadha hasthe Maha Lakshmi Namosthuthe. [1]

 
Salutations to you, who are the illusory power of the Universe, the basis for all wealth, who are worshipped by Divine beings. Conch, chakra, and club in hand, Mahalakshmi, salutations to you. (1)
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥२॥
Namasthe garudarude Kolasura bhayam kari Sarva papa hare, devi Maha Lakshmi Namosthuthe. [2]
 
Salutations to you, seated on Garuda, cause of fear for Lord Saturn, remover of all sin, Goddess Lakshmi, salutations to you (2)
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥३॥
Sarvagne Sarva varadhe Sarva dushta Bhayam karee,
Sarva dukha hare, deviMaha Lakshmi Namosthuthe.[ 3]
 
All-knowing, boon giver for all, cause of fear for all the wicked, remover of all sorrow, Goddess Lakshmi, salutations to you. (3)
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥४॥
Sidhi budhi pradhe devi Bhakthi mukthi pradayinee,
Manthra moorthe  sada devi Maha Lakshmi Namosthuthe. [4]
 
Goddess, who gives success and intelligence completely, she who generously gives enjoyment and liberation, who is the form of the mantra, Goddess Lakshmi, salutations to you. (4)
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥५॥
Adhyantha rahithe, devi Adhi Shakthi maheswari,
Yogaje yoga sambhoothe Maha Lakshmi Namosthuthe. [5]

 
Beginningless and endless goddess, Supreme Goddess of the universe, she who is yoga and is born of yoga, Goddess Lakshmi, salutations to you. (5)
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥६॥
Sthoola Sukshma maha roudhre Maha Shakthi Maho dhare,
Maha papa hare devi Maha Lakshmi Namosthuthe. [6]

 
The great terror (Durga) of gross and subtle (wicked beings), supreme power, engulfing all, redemptress of the universe, remover of the great sins, Goddess Lakshmi, salutations to you. (6)
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥७॥
Padmasana sthithe, devi Para brahma swaroopini,
Para mesi, jagan matha Maha Lakshmi Namosthuthe. [7]
 
Seated on a lotus, the Goddess, whose nature is the transcendent infinite, transcendent ruler, mother of the world, Goddess Lakshmi, salutations to you. (7)
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥८॥
Swethambara dhare, devi Nanalankara bhooshithe,
Jagat sthithe, jagan matha Maha Lakshmi Namosthuthe. [8]
 
Clad in white clothes, adorned with various ornaments, mother of the world, abiding in the world, Goddess Lakshmi, salutations to you. (8)
फलश्रुति
(
Benefits of chanting this prayer)
महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥
Maha lakmyashtakam stotram Ya padeth Bhakthiman nara,
Sarva sidhi mavapnothi Rajyam prapnothi sarvadha
.
 
The devotee who chants this verse of eight stanzas to Goddess Lakshmi gains all success and gains sovereignty at all times.
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥
Yeka kale paden nithyam, maha papa vinasanam Dwi kale paden nithyam Dana dhanya samanvitha,
 He who always recites once daily, gains destruction of great sin; he who recites twice daily, always is endowed with wealth and food.
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्न वरदा शुभा ॥
Tri kalam paden nithyam Maha shathru vinasanam Maha Lakshmir Bhaven nithyam Prasanna, varada Shubha. 
He who recites it three times daily always gains destruction of great enemies, and (Goddess Lakshmi) the pure giver of boons, would be always pleased (with the person).
महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ।
Goddess Lakshmi, salutations to you.

॥ इतीन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥









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