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Wednesday, January 29, 2014

Shree Mrityunjaya Stotram

श्रीमृत्युञ्जय-स्तोत्र 
Mrityunjaya Stotram
रत्नसानुशरासनं रजताद्रि शृङ्गनिकेतनं
शिञ्जिनी कृत पन्नगेश्वर मच्युतानल सायकम् ॥१
क्षिप्रदग्धपुर त्रयं त्रिदशालयैरभि वन्दितम्
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥२॥
सुमेरु पर्वत की चोटी पर हीरे जवाहरातों से जुड़े हुए वाणों के आसन पर विराजमान, सर्पराज (वासुकी नाग) की डोरी बाला भगवान विष्णु का अग्निवाण धारण किये हुए, त्रिपुरासुर राक्षस की नगरी को शीघ्र ही जला देने वाले, जो देवताओं से वन्दित हैं, ऐसे चन्द्रशेखर भगवान की शरण प्राप्त मेरा यमराज क्या कर सकता है? यानी मार नहीं सकता।
पञ्चपाद पुष्प गन्धि पदाम्बुज द्वय शोभितं
भाल लोचन जात हाटक दग्ध मन्मथ विग्रहम् ॥३॥
भस्म दिग्ध कलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययम्।
चन्द्र शेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥४॥
देनों चरण कमल सुगन्धित कमल से सुशोभित, सोने के समान कपाल में नेत्र वाले सम्पूर्ण शरीर में भस्म लगाये, कामदेव के शरीर को जला देने वाले, जो संसार के नाशक व पालक हैं, ऐसे भगवान चन्द्रशेखर (शिवजी) का आश्रय प्राप्त मेरा यमराज क्या बिगाड़ लेगा?
मत्तवारण मुख्य चर्मकृतोत्तरीयमनोहरं
पङ्कजासनपद्म लोचन पूजिताङ्घ्रिसरोरूहम् ॥५॥
देवसिद्धितरङ्गिणी कर सित्तशीत जटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥६॥
उन्मत्त गजराज का चर्म जिनका व चादर है, जो कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल नेत्र, सुंदर कमलों से पूजित, देवगंगा के जलकणों से सिक्त, शीतल, जटाधारी भगवान चन्द्रशेखर का आश्रय प्राप्त मेरा यमराज क्या कर लेगा?
कुण्डलीकृत कुण्डलीश्वर कुण्डल वृष वाहनं
नारदादि मुनीश्वरस्तुत वैभवं भुवनेश्वरम् ॥७॥
अन्धकान्तकमाश्रितामर पादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम् कि करिष्यति वै यम: ॥८॥
कुंडली मारे सर्पराज का कुण्डल कान में पहने हुए, बैल की सवारी वाले, नारद आदि श्रेष्ठ मुनियों से वन्दित ऐश्वर्य स्वरूप  चौदहों भुवन के स्वामी, अन्धकासुर को मारने वाले, देवता जिनके चरणों के आश्रित हैं, उस शमन का अन्त करने वाले, चन्द्रशेखर के आश्रय प्राप्त मेरा यमराज कुछ भी नहीं कर सकता।
यक्षराज सखं भगाक्षिहरं भुजङ्ग विभूषणं
शैलराज सुता परिष्कृत चारुवाम कलेवरम ॥९॥
क्ष्वेडनील गलं परश्वधारिणं मृग धारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥१०॥
कुबेर के मित्र, चन्द्र नेत्रहारी, सर्प आभूषण वाले, पार्वती (परिष्कृत व सुन्दर रूप) जिनकी पत्नी हंै, विष से जिनका गला नीला है, जो परशु और मृग धारण करने वाले चन्द्रशेखर का आश्रय प्राप्त मेरा यमराज कुछ नहीं कर सकता।
भेषजं भवरोगिणाम्खिलाऽपदामपहारिणं
दक्ष यज्ञ विनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् ॥११॥
भुक्ति मुक्ति फल प्रदं निखिलाय संघनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥१२॥
दक्ष प्रजापति के यज्ञ के नाशक, सत्व-रज-तम तीनों गुणों से युक्ताभिनेय भोग और मोक्ष फल देने वाले, समस्त संघों का निर्वाह करने वाले चन्द्रशेखर का आश्रय प्राप्त मेरा यमराज कुछ भी नहीं कर सकता।
भक्तवत्सलमर्चता निधिमक्षयं हरिदंबरं
सर्वभूतपति परात्परमप्रमेयमनूपमम् ॥१३॥
भूमि वारिनभो हुताशन सोम पालितआकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥१४॥
भक्तवत्सल, पूजित होने वाले अक्षयनिधि, हरित व धारण करने वाले, सब प्राणियों के स्वामी, परात्पर ब्रह्म, उपमारहित, पृथ्वी-जल-आकाश-अग्नि व चन्द्र से पालित आकृति वाले चन्द्रशेखर के आश्रित मेरा यमराज कुछ नहीं कर सकता है।
विश्व सृष्टि विधायिनं पुनरेव पालन तत्परं
संहरन्तमथ प्रपञ्च सशेष लोकनिवासिनम् ॥१५॥
क्रीडयन्त महर्निशं गणनाथ यूथ समावृतं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ॥१६॥
संसार के सृष्टि कर्ता, पुन: उसके पालन में तत्पर, सांसारिक प्रपंच (माया जाल) के हरण कर्ता, सब लोकों (भुवनों) के निवास स्थान, गणपति आदि समस्त यूथो से घिरे हुए, रात-दिन क्रीड़ा करने वाले, चन्द्रशेखर के आश्रित मेरा यमराज कुछ नहीं कर सकता।
रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नील कण्ठमुमापतिम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु करिष्यति ॥१७॥
रुद्र, पशुपति, स्थाणु, नीलकण्ठ, उमापति को मैं शिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगा?
कालकष्ट कलामूर्तिं कालाग्नि काल नाशनम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति ॥१८॥
काल (मृत्यु) जैसे कष्ट का नाश करने वाले, कलाओं की मूर्ति, कालाग्नि (दुष्टों को अग्नि के समान जलाने वाले), मृत्यु का भी नाश करने वाले को मैं शिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा कुछ भी नहीं करेगी।
नील कण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरूपद्रवम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति ॥१९॥
नीले कण्ठ वाले, त्रिनेत्र, स्वच्छ हृदय वाले, उपद्रवों से रहित देव शिव को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा कुछ भी नहीं करेगी।
वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति ॥२०॥
वामदेव, महादेव, लोकों के स्वामी, विश्व के गुरु शिव को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी/?
देवदेवं जगन्नाथं देवेशवृषभध्वजम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति ॥२१॥
देवों के भी देव, जगन्नाथ (संसार के स्वामी), देवों के स्वामी, जिनके ध्वजा में वृषभ का चिह्न है, उन शिवजी को मैं शिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी?
अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति ॥२२॥
अनंत, अव्यय शान्त स्वरूप, रुद्राक्ष - मालाधरी, शिव जी को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी?
आनन्दे परमं नित्यं कैवल्यप्रद कारणम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति ॥२३॥
नित्य आनन्द स्वरूप, उत्कृष्ट, शाश्वत, मोक्ष के कारण शिव को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी?
स्वर्गांपवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यंत कारिणम
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति ॥२४॥
स्वर्ग और मोक्ष देने वाले, सृष्टि-पालन व संहार करने वाले शिव को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी?
॥ इति श्रीपद्मपुराणान्तर्गत उत्तरखण्डे श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥




Please note this is the Third post I am posting about Mrityunjaya Stotram it is an update to previous post with Youtube video and Hindi meaning.

Aum Namaha Shivaye.



Tuesday, January 31, 2012

Shiva Apradh Kshamapan Stotra


शिवापराधक्षमापण  स्तोत्रम्

आदौ कर्मप्रसङ्गात्कलयति कलुषं मातृकुक्षौ स्थितं मां
विण्मूत्रामेध्यमध्ये कथयति नितरां जाठरो जातवेदाः ।
यद्यद्वै तत्र दुःखं व्यथयति नितरां शक्यते केन वक्तुं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥१॥
बाल्ये दुःखातिरेको मललुलितवपुः स्तन्यपाने पिपासा
नो शक्तश्चेन्द्रियेभ्यो भवगुणजनिताः जन्तवो मां तुदन्ति ।
नानारोगादिदुःखाद्रुदनपरवशः शङ्करं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥२॥
प्रौढोऽहं यौवनस्थो विषयविषधरैः पञ्चभिर्मर्मसन्धौ
दष्टो नष्टोऽविवेकः सुतधनयुवतिस्वादुसौख्ये निषण्णः ।
शैवीचिन्ताविहीनं मम हृदयमहो मानगर्वाधिरूढं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥३॥
वार्धक्ये चेन्द्रियाणां विगतगतिमतिश्चाधिदैवादितापैः
पापै रोगैर्वियोगैस्त्वनवसितवपुः प्रौढहीनं च दीनम् ।
मिथ्यामोहाभिलाषैर्भ्रमति मम मनो धूर्जटेर्ध्यानशून्यं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥४॥
नो शक्यं स्मार्तकर्म प्रतिपदगहनप्रत्यवायाकुलाख्यं
श्रौते वार्ता कथं मे द्विजकुलविहिते ब्रह्ममार्गेऽसुसारे ।
ज्ञातो धर्मो विचारैः श्रवणमननयोः किं निदिध्यासितव्यं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥५॥
स्नात्वा प्रत्यूषकाले स्नपनविधिविधौ नाहृतं गाङ्गतोयं
पूजार्थं वा कदाचिद्बहुतरगहनात्खण्डबिल्वीदलानि ।
नानीता पद्ममाला सरसि विकसिता गन्धधूपैः त्वदर्थं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥६॥
दुग्धैर्मध्वाज्युतैर्दधिसितसहितैः स्नापितं नैव लिङ्गं
नो लिप्तं चन्दनाद्यैः कनकविरचितैः पूजितं न प्रसूनैः ।
धूपैः कर्पूरदीपैर्विविधरसयुतैर्नैव भक्ष्योपहारैः
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥७॥
ध्यात्वा चित्ते शिवाख्यं प्रचुरतरधनं नैव दत्तं द्विजेभ्यो
हव्यं ते लक्षसङ्ख्यैर्हुतवहवदने नार्पितं बीजमन्त्रैः ।
नो तप्तं गाङ्गातीरे व्रतजननियमैः रुद्रजाप्यैर्न वेदैः
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥८॥
स्थित्वा स्थाने सरोजे प्रणवमयमरुत्कुम्भके (कुण्डले)सूक्ष्ममार्गे
शान्ते स्वान्ते प्रलीने प्रकटितविभवे ज्योतिरूपेऽपराख्ये ।
लिङ्गज्ञे ब्रह्मवाक्ये सकलतनुगतं शङ्करं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥९॥
नग्नो निःसङ्गशुद्धस्त्रिगुणविरहितो ध्वस्तमोहान्धकारो
नासाग्रे न्यस्तदृष्टिर्विदितभवगुणो नैव दृष्टः कदाचित् ।
उन्मन्याऽवस्थया त्वां विगतकलिमलं शङ्करं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शम्भो  ॥१०॥
चन्द्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गङ्गाधरे शङ्करे
सर्पैर्भूषितकण्ठकर्णयुगले (विवरे)नेत्रोत्थवैश्वानरे ।
दन्तित्वक्कृतसुन्दराम्बरधरे त्रैलोक्यसारे हरे
मोक्षार्थं कुरु चित्तवृत्तिमचलामन्यैस्तु किं कर्मभिः  ॥११॥
किं वाऽनेन धनेन वाजिकरिभिः प्राप्तेन राज्येन किं
किं वा पुत्रकलत्रमित्रपशुभिर्देहेन गेहेन किम् ।
ज्ञात्वैतत्क्षणभङ्गुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दूरतः
स्वात्मार्थं गुरुवाक्यतो भज मन श्रीपार्वतीवल्लभम्  ॥१२॥
आयुर्नश्यति पश्यतां प्रतिदिनं याति क्षयं यौवनं
प्रत्यायान्ति गताः पुनर्न दिवसाः कालो जगद्भक्षकः ।
लक्ष्मीस्तोयतरङ्गभङ्गचपला विद्युच्चलं जीवितं
तस्मात्त्वां (मां)शरणागतं शरणद त्वं रक्ष रक्षाधुना  ॥१३॥
वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।
वन्दे सूर्यशशाङ्कवह्निनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम्  ॥१४॥
गात्रं भस्मसितं च हसितं हस्ते कपालं सितं
खट्वाङ्गं च सितं सितश्च वृषभः कर्णे सिते कुण्डले ।
गङ्गाफेनसिता जटा पशुपतेश्चन्द्रः सितो मूर्धनि
सोऽयं सर्वसितो ददातु विभवं पापक्षयं सर्वदा  ॥१५॥
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वाऽपराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्ष्मस्व
शिव शिव करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो  ॥१६॥
 ॥इति श्रीमद् शङ्कराचार्यकृत शिवापराधक्षमापण स्तोत्रं संपूर्णम् ॥




Friday, January 14, 2011

Vaidyanatha Ashtakam - Lord Shiva

श्री वैद्यनाथाष्टकम्
Shree Vaidyanatha Ashtakam

श्रीरामसौमित्रिजटायुवेद षडाननादित्य कुजार्चिताय ।
श्रीनीलकण्ठाय दयामयाय श्रीवैद्यनाथाय नमःशिवाय ॥ १॥
Salutations to Siva, Who is known as Vaidyanatha, Who is adored by Sri Rama, Laksamana, Jatayu, Veda, Kartikeya, Sun and Narakasura, Who has a blue-throat, and Who is full of benevolence.

गङ्गाप्रवाहेन्दु जटाधराय त्रिलोचनाय स्मर कालहन्त्रे ।
समस्त देवैरभिपूजिताय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ २॥
Salutations to Siva, Who is known as Vaidyanatha, Who beholds the flow of Ganga and the Moon in His tress-locks, Who has three eyes (Trilocana), Who destroys both Kala (time) and Smara (Kamadeva), and Who is gloriously adored by all the demi-gods.

भक्तःप्रियाय त्रिपुरान्तकाय पिनाकिने दुष्टहराय नित्यम् ।
प्रत्यक्षलीलाय मनुष्यलोके श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ३॥
Salutations to Siva, Who is known as Vaidyanatha, Who is dear to the devotees, Who destroyed the demon known as Tripurasura, Who beholds the bow called Pinaka, Who always defeats the evil and cunning, and Whose sportive plays manifest after the world is formed.

प्रभूतवातादि समस्तरोग प्रनाशकर्त्रे मुनिवन्दिताय ।
प्रभाकरेन्द्वग्नि विलोचनाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ४॥
Salutations to Siva, Who is known as Vaidyanatha, Who destroys all the diseases related to living beings and their morbid affection of the wind (diseases like rheumatism, gout, flatulence, etc.), Who is extolled by sages, and Who has the Sun, the Moon and the Fire as His three eyes.

वाक् श्रोत्र नेत्राङ्घ्रि विहीनजन्तोः वाक्श्रोत्रनेत्रांघ्रिसुखप्रदाय ।
कुष्ठादिसर्वोन्नतरोगहन्त्रे श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ५॥
Salutations to Siva, Who is known as Vaidyanatha, Who provides the bliss of having voice, ears, eyes, and legs to those living beings who are devoid of voice, ears, eyes and legs, respectively, and Who finishes the increasing diseases like leprosy.

वेदान्तवेद्याय जगन्मयाय योगीश्वरद्येय पदाम्बुजाय ।
त्रिमूर्तिरूपाय सहस्रनाम्ने श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ६॥
Salutations to Siva, Who is known as Vaidyanatha, Who is understood by the study of Vedanta (Upanisat), Who is all pervading and has manifested as the world, Whose lotus feet are meditated upon by the Lord of Yogis (Krishna), Who has manifested as the Trinity of Visnu, Brahma and Siva, and Who has thousands of names.

स्वतीर्थमृद्भस्मभृताङ्गभाजां पिशाचदुःखार्तिभयापहाय ।
आत्मस्वरूपाय शरीरभाजां श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ७॥
Salutations to Siva, Who is known as Vaidyanatha, Who destroys the fear, grief, pain and ghostly fears of those associated with the ashes of the cremation of those bodies which got dead in His shrine, and Who is the soul or atman-form for the living beings.

श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय स्रक्गन्ध भस्माद्यभिशोभिताय ।
सुपुत्रदारादि सुभाग्यदाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ८॥
Salutations to Siva, Who is known as Vaidyanatha, Who has a blue throat, Who has a flag depicting a bull, Who is exceptionally adorned by the fragrance of water-flowers and ashes, and Who bestows the good fate of a good wife and son.

वालाम्बिकेश वैद्येश भवरोगहरेति च ।
जपेन्नामत्रयं नित्यं महारोगनिवारणम् ॥ ९॥
Those who recite this prayer,
Thrice a day with devotion,
And pray the Lord Vaidyanatha,
Who is with his consort Balambika,
And who removes the fear of birth and death,
Would get cured of all great diseases.

॥ इति श्री वैद्यनाथाष्टकम् ॥